Thursday, April 8, 2010

Daily Words of the Buddha # 8-4-2010

अन्तलिक्खे न समुद्दमज्झे, न पब्बतानं विवरं पविस्स [पविसं (स्या॰)]।

विज्‍जती [न विज्‍जति (क॰ सी॰ पी॰ क॰)] सो जगतिप्पदेसो, यत्थट्ठितो [यत्रट्ठितो (स्या॰)] मुच्‍चेय्य पापकम्मा॥

न आकाश मे , न समुद्रं की गहराइयों मे , न पर्वतों की दराओं में प्रवेश करके , इस जगत मे कोई स्थान ऐसा नही है जहाँ कोई अपने पापकर्मों को भोगने से बच सके ।

                                                            धम्मपद गाथा ९/१२७ पापवग्गो

न अन्तलिक्खे न समुद्दमज्झे, न पब्बतानं विवरं पविस्स।

न विज्‍जती सो जगतिप्पदेसो, यत्थट्ठितं [यत्रट्ठितं (स्या॰)] नप्पसहेय्य मच्‍चु

न आकाश में , न समुद्र्म की गहराइयों मे , न पर्वतों के दराओं मे प्रवेश करके , इस जगत मे कोई ऐसा स्थान नही है जहाँ ठहरे हुये को मृत्यु दबोच न ले ।

                                                   धमम्पद गाथा ९/१२८ पापवग्गो

 

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