सब्बत्थ वे सप्पुरिसा चजन्ति, न कामकामा लपयन्ति सन्तो।
सुखेन फुट्ठा अथ वा दुखेन, न उच्चावचं [नोच्चावचं (सी॰ अट्ठ॰)] पण्डिता दस्सयन्ति॥
सत्पुरुष सर्वत्र राग छोड देते हैं । संतजन कामभोगों के लिये बात नही चलाते । चाहेच सुख मिले या दुख , पंडित जन अपने मन का उतार चढाव प्रदर्शित नही करते ।
धम्मपद ८३
The good relinquish attachment to everything.
The wise do not prattle with yearning for pleasures.
The clever show neither elation, nor depression,
when touched either by happiness, or by sorrow...
Dhammapada 83
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