अपि दिब्बेसु कामेसु, रतिं सो नाधिगच्छति।
तण्हक्खयरतो होति, सम्मासम्बुद्धसावको॥
स्वर्ण समान भौतिक आनन्द से तूप्ति असंभव है …बुद्ध के सच्चे अनुयायी वही हैं जो इच्छाओं को मार कर अनमोल आनंद की प्राप्ति करते हैं ।
धम्मपद १८७
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