न तं माता पिता कयिरा, अञ्ञे वापि च ञातका।
सम्मापणिहितं चित्तं, सेय्यसो नं ततो करे॥
जितनी भलाई न माता पिता कर सकते हैं , न दूसरे भाई बधुं उससे कही अधिक भलाई और सन्मार्ग पर लगा हुआ करता है ।
धम्मपद ४३
Neither mother, nor father, nor
any other family or friend can do
greater good for oneself, than a
well trained & well directed mind!
Dhammapada 43
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