न कहापणवस्सेन, तित्ति कामेसु विज्जति।
अप्पस्सादा दुखा कामा, इति विञ्ञाय पण्डितो॥
स्वर्ण भंडार भी तृष्णा नही मिटा सकते …मन की प्यास नही बुझा सकते …वे समझदार है जो जानते हैं कि तूष्णा ..अन्त मे दु:ख का कारण है ।
धम्मपद १८६
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