न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे।
भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे॥
न पापी मित्रों और न अधम्म मित्रों की संगत करे । संगति करे कल्याण मित्रों की , उत्तम पुरुषॊं की ।
धम्मपद ७८
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