निधीनंव पवत्तारं, यं पस्से वज्जदस्सिनं।
निग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजे।
तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो॥
जो व्यक्ति अपना दोष दिखाने वाले को संपदा दिखाने वाले की तरह समझे , जो संयम की बात करने वाले मेघावी पुरुषॊं की संगति करे , उस व्यक्ति का हमेशा मंगल होता है , अमंगल नही ।
धम्मपद ७६
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