अशोकचक्र भारतीयता का प्रतीकचिन्ह है। इस खास चिन्ह का भारत में मिलना/ दिखना जितना आम है, इसकी चौबीस शलाकाओं के बारे में जानकारी उतनी आम नहीं। मजे की बात तो यह कि कुछ समझदार लोगों ने तो इसके कुछ और ही नए अर्थ गढ़ लिए हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीय सम्राट अशोक को नाम से तो जानते हैं, अशोक चक्र को झंडे से लेकर मुद्राओं तक में बड़ी शान से लगाते हैं, परन्तु अशोक की महानता के कारक इस चक्र के बारे में नहीं। बुद्ध के बताए धम्म पर आधारित इस प्रतीक को जाने, समझे, और जीवन में उतारे बगैर एक अन्धविश्वास अथवा फैशन की भाँति क्यों ढो रहे हैं?
1 Avidyā (अविद्या)- lack of awareness -
2 Sanskāra (संखारा)- conditioning of mind unknowingly
3 Vijñāna (विज्ञान)- consciousness
4 Nāmarūpa (नामरूप)- name and form (constituent elements of mental and physical existence)
5 Ṣaḍāyatana (षड़ायतन)- six senses (eye, ear, nose, tongue, body, and mind) -
6 Sparśa (स्पर्श)- contact
7 Vedanā (वेदना)- sensation
8 Tṛṣṇā (तृष्णा)- thirst
9 Upādāna (उपादान)- grasping
10 Bhava (भव)- coming to be
11 Jāti (जाति)- being born -
12 Jarāmaraṇa (जरामरणा)- old age and death - corpse being carried.
These 12 in reverse represent a total 24 spokes representing the dhamma.
Friday, January 15, 2016
अशोक चक्र - आइये जाने बुद्ध धम्म के इस प्रतीक को
Monday, January 11, 2016
धम्मपद 146 जरावग्गो -
Photo credit : Supriya Agarwal
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ,कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोग तुम ज्ञानरूपी प्रकाशपुंज की खोज क्यों नही करते ?
धम्मपद 146 जरावग्गो
Tuesday, May 4, 2010
Daily words of the Buddha # 4-5-2010
चरन्ति बाला दुम्मेधा, अमित्तेनेव अत्तना।
करोन्ता पापकं कम्मं, यं होति कटुकप्फलं॥
बाल बुद्धि वाले मूर्ख जन अपने ही शत्रु बन कर वैसे ही आचरण करते हैं और ऐसे ही पापकर्म करते है जिसका फ़ल उनके लिये कडुवा होता है ।
धम्मपद ६६
Monday, May 3, 2010
Daily words of the Buddha # 3-5-2010
यावजीवम्पि चे बालो, पण्डितं पयिरुपासति।
न सो धम्मं विजानाति, दब्बी सूपरसं यथा॥
चाहे मूढ व्यक्ति पंडित की जीवन भर सेवा मे लगा रहे , वह धर्म को वैसे ही जान नही पाता जैसे कलुछी सूप को ।
धम्मपद ६४
Sunday, May 2, 2010
Daily words of the Buddha # 2-5-2010
Friday, April 30, 2010
Daily words of the Buddha # 30-4-2010
यो बालो मञ्ञति बाल्यं, पण्डितो वापि तेन सो।
बालो च पण्डितमानी, स वे ‘‘बालो’’ति वुच्चति॥
धम्मपद ६३.
जो मूढ होकर अपनी मूढता को स्वीकारता है वह सच्चे अर्थ मे ज्ञानी और पंडित है और जो मूढ होकर अपने आप को पंडित मानता है , वह मूढ ही कहलाया जाता है ।
Thursday, April 29, 2010
Daily words of the Buddha # 29-4-2010
पुत्ता मत्थि धनम्मत्थि [पुत्तमत्थि धनमत्थि (क॰)], इति बालो विहञ्ञति।
अत्ता हि [अत्तापि (?)] अत्तनो नत्थि, कुतो पुत्ता कुतो धनं॥
धम्मपद ६२
“ मेरा पुत्र !”, “मेरा धन ! " – इस मिथ्या चितंन मे ही मूढ व्यक्ति व्याकुल बना रहता है । अरे, जब यह तन मन का अपनापा भी अपना नही है तो कहां “मेरा पुत्र !” “ और कहाँ “मेरा धन !”
Wednesday, April 28, 2010
Daily words of the Buddha # 28-4-2010
चरञ्चे नाधिगच्छेय्य, सेय्यं सदिसमत्तनो।
एकचरियं [एकचरियं (क॰)] दळ्हं कयिरा, नत्थि बाले सहायता॥
यदि शील , समाधि या प्रज्ञा मे विचरण करते हुये अपने से श्रेष्ठ या अपना जैसा सहचर न मिले , तो दृढता के साथ अकेला विचरण करे । मूर्ख च्यक्ति से सहायता नही मिल सकती ।
धम्मपद ६१
Tuesday, April 27, 2010
Daily words of the Buddha # 27-4-2010
Monday, April 26, 2010
Daily words of the Buddha # 26-4-2010
Sunday, April 25, 2010
Daily words of the Buddha # 25-4-2010
Saturday, April 24, 2010
Daily words of the Buddha # 24-4-2010
अनूपवादो अनूपघातो [अनुपवादो अनुपघातो (स्या॰ क॰)], पातिमोक्खे च संवरो।
मत्तञ्ञुता च भत्तस्मिं, पन्तञ्च सयनासनं।
अधिचित्ते च आयोगो, एतं बुद्धान सासनं॥
धम्मसंहिता पर आचरण करते हुये किसी के दोषों को न देखॊ ..दूसरों को तकलीफ़ न दो .. काने और सोने मे संयमित रहो और द्यान लगाने की पूरी चेष्टा करो ।
धमपद १८५
Thursday, April 22, 2010
Daily words of the Buddha # 22-4-2010
Wednesday, April 21, 2010
Daily words of the Buddha # 21-4-2010
ये झानपसुता धीरा, नेक्खम्मूपसमे रता।
देवापि तेसं पिहयन्ति, सम्बुद्धानं सतीमतं॥
ईशवर भी जागृतों से प्रतिस्पर्था कर उन पर कृपा करते हैं ..जगृत होकर ध्यानवस्था मे ही पूर्ण स्वतंत्रता और शांति की प्राप्ति संभव है ।
धम्मपद १८१
Tuesday, April 20, 2010
Daily words of the Buddha # 20-4-2010
यस्स जितं नावजीयति, जितं यस्स [जितमस्स (सी॰ स्या॰ पी॰), जितं मस्स (क॰)] नो याति कोचि लोके।
तं बुद्धमनन्तगोचरं, अपदं केन पदेन नेस्सथ॥
वह विजेता है , उस पर कभी विजय प्राप्त नही की जा सकती ..उसके प्रभाव क्षेत्र मे कोई दखल नही दे सकता । उसके पास पहुँचने का मर्ग है …बुद्ध ..जो जागृत स्वरुप है ।
धम्मपद १७९
Monday, April 19, 2010
Daily words of the Buddha # 19.4.2010
Sunday, April 18, 2010
Daily words of the Buddha #18-4-2010
सदा जागरमानानं, अहोरत्तानुसिक्खिनं।
निब्बानं अधिमुत्तानं, अत्थं गच्छन्ति आसवा॥
Saturday, April 17, 2010
Daily Words of the Buddha #17-4-2010
Friday, April 16, 2010
Daily words of the Buddha # 16-4-2010
निधीनंव पवत्तारं, यं पस्से वज्जदस्सिनं।
निग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजे।
तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो॥
जो व्यक्ति अपना दोष दिखाने वाले को संपदा दिखाने वाले की तरह समझे , जो संयम की बात करने वाले मेघावी पुरुषॊं की संगति करे , उस व्यक्ति का हमेशा मंगल होता है , अमंगल नही ।
धम्मपद ७६
Thursday, April 15, 2010
Daily words of the Buddha #15-4-2010
न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे।
भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे॥
न पापी मित्रों और न अधम्म मित्रों की संगत करे । संगति करे कल्याण मित्रों की , उत्तम पुरुषॊं की ।
धम्मपद ७८