यो बालो मञ्ञति बाल्यं, पण्डितो वापि तेन सो।
बालो च पण्डितमानी, स वे ‘‘बालो’’ति वुच्चति॥
धम्मपद ६३.
जो मूढ होकर अपनी मूढता को स्वीकारता है वह सच्चे अर्थ मे ज्ञानी और पंडित है और जो मूढ होकर अपने आप को पंडित मानता है , वह मूढ ही कहलाया जाता है ।
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