यो वे उप्पतितं कोधं, रथं भन्तंव वारये [धारये (सी॰ स्या॰ पी॰)]।
तमहं सारथिं ब्रूमि, रस्मिग्गाहो इतरो जनो॥
जो भडके हुये क्रोध को घूमते हुये रथ के समान रोक ले उसे मै सारथी कहता हूँ , दूसरे लोग तो सिर्फ़ लगाम पकडने वाले होते हैं ।
धम्मपद २२२
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