को नु हासो [किन्नु हासो (क॰)] किमानन्दो, निच्चं पज्जलिते सति।
अन्धकारेन ओनद्धा, पदीपं न गवेसथ॥
जलै जहाँ जब नित्य तौ, कहँ आनन्द हुलास ?
तम में तुम खोजत न किमि , दीप जु देत प्रकाश ॥
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ? कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोगों , तुम ज्ञान रूपी प्रकाश द्धीप की खोज क्यों नही करते ?
What is laughter, what is joy, when the world is ever burning? Shrouded by darkness, would you not seek the light?
Thursday, February 11, 2016
धम्मपद गाथा 146
Wednesday, February 10, 2016
धम्मपद गाथा 121
मावमञ्ञेथ [माप्पमञ्ञेथ (सी॰ स्या॰ पी॰)] पापस्स, न मन्तं [न मं तं (सी॰ पी॰), न मत्तं (स्या॰)] आगमिस्सति।
उदबिन्दुनिपातेन, उदकुम्भोपि पूरति।
बालो पूरति [पूरति बालो (सी॰ क॰), आपूरति बालो (स्या॰)] पापस्स, थोकं थोकम्पि [थोक थोकम्पि (सी॰ पी॰)] आचिनं॥
‘ पाप न आये मम निकट ’ अपने मन यूं धार ।
पाप कर्म कूँ जानि कें , करै नही सत्कार ॥
टपकति पानी बूँद ज्यों , घडा भरे केहि काल ।
नैक-नैक त्यों पाप अपि , संचित करले बाल ॥
धम्मपद गाथा 121
Tuesday, February 9, 2016
Monday, February 8, 2016
Saturday, January 30, 2016
Thursday, January 28, 2016
Monday, January 25, 2016
Sunday, January 24, 2016
Saturday, January 23, 2016
Friday, January 22, 2016
Thursday, January 21, 2016
Wednesday, January 20, 2016
वर्तमान में जीना - तिक नयात हन्ह
वर्तमान मे रहने का अर्थ यह नही है कि आप अतीत को भूल जायें या भविष्य की जिम्मेदारी से दूर चले जायें । बल्कि इसका अर्थ यह है कि आप अतीत को लेकर पछतावा न करें और भविष्य को लेकर चिंता न करें । अगर आप सचेतावस्था के साथ अतीत को देखेगें तो आप पायेगें कि अतीत आप की यात्रा में एक जांच का उद्देशय हो सकता है कि ऐसी परिस्थतियाँ क्यों और कैसे उत्पन्न हुयी । अतीत मे देख कर आप कई अंतर्दृष्टियों को प्राप्त भी कर सकते हैं लेकिन साथ ही में यह आवशयक है कि आप की दृष्टि वर्तमान समय पर सचेतावस्था के साथ रहे । ~तिक न्यात हन्ह, The Art of Power~
“To dwell in the here and now does not mean you never think about the past or responsibly plan for the future. The idea is simply not to allow yourself to get lost in regrets about the past or worries about the future. If you are firmly grounded in the present moment, the past can be an object of inquiry, the object of your mindfulness and concentration. You can attain many insights by looking into the past. But you are still grounded in the present moment.”
― Thich Nhat Hanh, The Art of Power
http://preachingsofbuddha.blogspot.in/2013/09/pastpresentandfuture.html
Tuesday, January 19, 2016
Perfection - Buddha
When you realize how perfect everything is, you will tilt your head back and laugh at the sky. – Buddha.
Monday, January 18, 2016
True friend - Buddha
An insincere and evil friend is more to be feared than a wild beast; a wild beast may wound your body, but an evil friend will wound your mind. – Buddha.
Images shared under Creative Commons by Hartwig HKD, on Flickr
Thursday, January 14, 2016
ताओ - Tao
कुछ है जो अपरिभाषित है
फ़िर भी सम्पूर्ण और शाश्वत है
जो धरती और आकाश से भी पहले से ही है
शांति और अपार
स्थिर है शुरुआत से
और फ़िर भी मौजूद है
सब चीजो की उत्त्पत्ति का कारण है
मैं इसका नाम नही जानता
पर इसे ताओ के नाम से कहता हूँ
~लाओत्सु~
Tuesday, January 12, 2016
Monday, January 11, 2016
धम्मपद 146 जरावग्गो -
Photo credit : Supriya Agarwal
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ,कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोग तुम ज्ञानरूपी प्रकाशपुंज की खोज क्यों नही करते ?
धम्मपद 146 जरावग्गो
Sunday, January 10, 2016
Saturday, January 9, 2016
सिगालोवाद सुत्त - Sigalovada Sutta
सिगालोवाद सुत्त : छ: दिशाये और छ: प्रकार के रिशतों को बचाना ( ऊपर चित्र से )
छ: दिशाये:
१. जीवन का आरम्भ –हमारा बचपन । पूर्व दिशा बच्चॊ को तथा माता पिता को दर्शाती है ।
२. युवा होने पर अगला धरातल हमारा विधालय – दक्षिण दिशा विधार्थी तथा अध्यापकों को दर्शाती है ।
३. युवा –वयस्क होने पर परिवार का आरम्भ । पशिचम दिशा पति-पत्नी का प्रतीक है ।
४. आगे बढकर , हमारा सामाजिक जीवन । उत्तर दिशा मित्र तथा सहयोगी को दर्शाती है ।
५. कमाऊ होने पर हमारा व्यपार तथा अन्य कार्य होते हैं । नीचे की दिशा मालिकों , नियोक्ता तथा कर्मचारियों का प्रतीक है ।
६. जब हम जीवन मे परिपक्व होते हैं तब हम उच्च आर्द्श ढूँढते हैं । उत्तर की दिशा साधारण लोगों को तथा आध्यात्मिक गुरुऒं को दर्शाती है ।
दीघ निकाय के सिगाल सुत्त से पता चलता है कि सिगाल नामक युवक हठीला , भौतिकवादी और जिद्दी स्वभाव का युवक था । राजगृह के वेलुवन में विहार करते हुये भिक्षाटन के लिये निकले बुद्ध की मुलाकात श्रेष्ठिपुत्र सिगाल से होती है जो छह दिशाओं को झुककर नमस्कार कर रहा था । बुद्ध के पूछने पर उसने बताया कि उसके पिता की अन्तिम इच्छा अनुसार वह यह अनुष्ठान नियमित रुप से करता है लेकिन न तो उसको इस पर विशवास है और न ही वह इसका अर्थ जानता है ।
भगवान् बुद्ध नें सिगाल को उपदेश देते हुये कहा कि उनके धम्म में पूरब का मतलब माता- पिता , दक्षिण का अर्थ गुरु और शिक्षक , पशिचम का अर्थ पत्नी और बच्चे , उत्तर का मतलब मित्र और रिशतेदार , धरती का अर्थ कर्मचारी , नौकर-चाकर और आसामान का अर्थ साधु संत, महापुरुष तथा आर्दश व्यक्ति होता है । बुद्ध ने कहा कि छ: दिशाओं की पूजा इस तरह से करनी चाहिये