को नु हासो [किन्नु हासो (क॰)] किमानन्दो, निच्चं पज्जलिते सति।
अन्धकारेन ओनद्धा, पदीपं न गवेसथ॥
जलै जहाँ जब नित्य तौ, कहँ आनन्द हुलास ?
तम में तुम खोजत न किमि , दीप जु देत प्रकाश ॥
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ? कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोगों , तुम ज्ञान रूपी प्रकाश द्धीप की खोज क्यों नही करते ?
What is laughter, what is joy, when the world is ever burning? Shrouded by darkness, would you not seek the light?
Thursday, February 11, 2016
धम्मपद गाथा 146
Wednesday, February 10, 2016
धम्मपद गाथा 121
मावमञ्ञेथ [माप्पमञ्ञेथ (सी॰ स्या॰ पी॰)] पापस्स, न मन्तं [न मं तं (सी॰ पी॰), न मत्तं (स्या॰)] आगमिस्सति।
उदबिन्दुनिपातेन, उदकुम्भोपि पूरति।
बालो पूरति [पूरति बालो (सी॰ क॰), आपूरति बालो (स्या॰)] पापस्स, थोकं थोकम्पि [थोक थोकम्पि (सी॰ पी॰)] आचिनं॥
‘ पाप न आये मम निकट ’ अपने मन यूं धार ।
पाप कर्म कूँ जानि कें , करै नही सत्कार ॥
टपकति पानी बूँद ज्यों , घडा भरे केहि काल ।
नैक-नैक त्यों पाप अपि , संचित करले बाल ॥
धम्मपद गाथा 121
Friday, January 22, 2016
Friday, January 15, 2016
अशोक चक्र - आइये जाने बुद्ध धम्म के इस प्रतीक को
अशोकचक्र भारतीयता का प्रतीकचिन्ह है। इस खास चिन्ह का भारत में मिलना/ दिखना जितना आम है, इसकी चौबीस शलाकाओं के बारे में जानकारी उतनी आम नहीं। मजे की बात तो यह कि कुछ समझदार लोगों ने तो इसके कुछ और ही नए अर्थ गढ़ लिए हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीय सम्राट अशोक को नाम से तो जानते हैं, अशोक चक्र को झंडे से लेकर मुद्राओं तक में बड़ी शान से लगाते हैं, परन्तु अशोक की महानता के कारक इस चक्र के बारे में नहीं। बुद्ध के बताए धम्म पर आधारित इस प्रतीक को जाने, समझे, और जीवन में उतारे बगैर एक अन्धविश्वास अथवा फैशन की भाँति क्यों ढो रहे हैं?
1 Avidyā (अविद्या)- lack of awareness -
2 Sanskāra (संखारा)- conditioning of mind unknowingly
3 Vijñāna (विज्ञान)- consciousness
4 Nāmarūpa (नामरूप)- name and form (constituent elements of mental and physical existence)
5 Ṣaḍāyatana (षड़ायतन)- six senses (eye, ear, nose, tongue, body, and mind) -
6 Sparśa (स्पर्श)- contact
7 Vedanā (वेदना)- sensation
8 Tṛṣṇā (तृष्णा)- thirst
9 Upādāna (उपादान)- grasping
10 Bhava (भव)- coming to be
11 Jāti (जाति)- being born -
12 Jarāmaraṇa (जरामरणा)- old age and death - corpse being carried.
These 12 in reverse represent a total 24 spokes representing the dhamma.