मुहुत्तमपि चे विञ्ञू, पण्डितं पयिरुपासति।
खिप्पं धम्मं विजानाति, जिव्हा सूपरसं यथा॥
चाहे विज्ञ पुरुष मूहर्त भर ही पंडित की सेवा मे लगा रहे , वह शीघ्र ही धर्म को वैसे ही जान लेता है जैसे जिह्या सूप को ।
धम्मपद ६५
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