न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे।
भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे॥
न पापी मित्रों और न अधम्म मित्रों की संगत करे । संगति करे कल्याण मित्रों की , उत्तम पुरुषॊं की ।
धम्मपद ७८
न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे।
भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे॥
न पापी मित्रों और न अधम्म मित्रों की संगत करे । संगति करे कल्याण मित्रों की , उत्तम पुरुषॊं की ।
धम्मपद ७८
अक्कोधेन जिने कोधं, असाधुं साधुना जिने।
जिने कदरियं दानेन, सच्चेनालिकवादिनं॥
अक्रोध से क्रोध को जीते , अभद्र को भद्र बन कर जीते , कृपण को दान से जीते और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीते ।
धम्मपद २२३
Overcome the angry by kindness;
Overcome the wicked by goodness;
Overcome the miser by generosity;
Overcome the liar by truth.
Dhammapada 223
न तं माता पिता कयिरा, अञ्ञे वापि च ञातका।
सम्मापणिहितं चित्तं, सेय्यसो नं ततो करे॥
जितनी भलाई न माता पिता कर सकते हैं , न दूसरे भाई बधुं उससे कही अधिक भलाई और सन्मार्ग पर लगा हुआ करता है ।
धम्मपद ४३
Neither mother, nor father, nor
any other family or friend can do
greater good for oneself, than a
well trained & well directed mind!
Dhammapada 43
सब्बत्थ वे सप्पुरिसा चजन्ति, न कामकामा लपयन्ति सन्तो।
सुखेन फुट्ठा अथ वा दुखेन, न उच्चावचं [नोच्चावचं (सी॰ अट्ठ॰)] पण्डिता दस्सयन्ति॥
सत्पुरुष सर्वत्र राग छोड देते हैं । संतजन कामभोगों के लिये बात नही चलाते । चाहेच सुख मिले या दुख , पंडित जन अपने मन का उतार चढाव प्रदर्शित नही करते ।
धम्मपद ८३
The good relinquish attachment to everything.
The wise do not prattle with yearning for pleasures.
The clever show neither elation, nor depression,
when touched either by happiness, or by sorrow...
Dhammapada 83
न हि पापं कतं कम्मं, सज्जु खीरंव मुच्चति।
डहन्तं बालमन्वेति, भस्मच्छन्नोव [भस्माछन्नोव (सी॰ पी॰ क॰)] पावको॥
जैसे ताजा दूध शीघ्र नही जमता , उसी तरह किया गया पाप कर्म शीघ्र अपना फ़ल नही लाता । राख से ढकी आग की तरह जलता हुआ वह मूर्ख का पीछा करता है ।
धम्मपद गाथा बालवग्गो ५:७१
कुम्भूपमं कायमिमं विदित्वा, नगरूपमं चित्तमिदं ठपेत्वा।
योधेथ मारं पञ्ञावुधेन, जितञ्च रक्खे अनिवेसनो सिया॥
इस शरीर को घडॆ के समान जान और इस चित्त को गढ के समान रक्षित और दृढ बना , प्रज्ञा रुपी शस्त्र के साथ मार से युद्ध करे । उसे जीत लेने पर भी चित्त की रक्षा करे और अनास्कत बना रहे ।
धम्मपद गाथा ३:४० चित्तवग्गो
PNदीघा जागरतो रत्ति, सन्तस्स योजनं।
दीघो बालानं संसारो, सद्धंम्मं अविजानतं ॥
जागने वाले की रात लम्बी हो जाती है , थके हुये का योजन लम्बा हो जाता है । सद्धर्म को न जानने वाले मूर्ख व्यक्तियों के लिये संसार चक्र लम्बा हो जाता है ।
धम्मपद गाथा ५:६० बालवग्गो ।