सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा [कुसलस्सूपसम्पदा (स्या॰)]।
सचित्तपरियोदपनं [सचित्तपरियोदापनं (?)], एतं बुद्धान सासनं॥
सब बुराइयों से दूर रहो ..अच्छाइयाँ पैदा करने की कोशिश करते रहो …मन मस्तिष्क की शुद्ध्ता रखॊ ।
धम्मपद १८३
ये झानपसुता धीरा, नेक्खम्मूपसमे रता।
देवापि तेसं पिहयन्ति, सम्बुद्धानं सतीमतं॥
ईशवर भी जागृतों से प्रतिस्पर्था कर उन पर कृपा करते हैं ..जगृत होकर ध्यानवस्था मे ही पूर्ण स्वतंत्रता और शांति की प्राप्ति संभव है ।
धम्मपद १८१
यस्स जितं नावजीयति, जितं यस्स [जितमस्स (सी॰ स्या॰ पी॰), जितं मस्स (क॰)] नो याति कोचि लोके।
तं बुद्धमनन्तगोचरं, अपदं केन पदेन नेस्सथ॥
वह विजेता है , उस पर कभी विजय प्राप्त नही की जा सकती ..उसके प्रभाव क्षेत्र मे कोई दखल नही दे सकता । उसके पास पहुँचने का मर्ग है …बुद्ध ..जो जागृत स्वरुप है ।
धम्मपद १७९
सदा जागरमानानं, अहोरत्तानुसिक्खिनं।
निब्बानं अधिमुत्तानं, अत्थं गच्छन्ति आसवा॥
निधीनंव पवत्तारं, यं पस्से वज्जदस्सिनं।
निग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजे।
तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो॥
जो व्यक्ति अपना दोष दिखाने वाले को संपदा दिखाने वाले की तरह समझे , जो संयम की बात करने वाले मेघावी पुरुषॊं की संगति करे , उस व्यक्ति का हमेशा मंगल होता है , अमंगल नही ।
धम्मपद ७६