सुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु असंवुतं।
भोजनम्हि चामत्तञ्ञुं, कुसीतं हीनवीरियं।
तं वे पसहति मारो, वातो रुक्खंव दुब्बलं॥
अच्छी लगने वाली चीजों को शुभ ही शुभ देखते विहार करने वाले , इंद्रियों मे असंयत , भोजन की मात्रा के अजानकार , आलसी और उधोगहीन को मार ऐसे सताता है जैसे दुर्बल वृक्ष को मारुत ( पवन )
Just as a storm throws down a weak tree,so does Mara overpower the person who lives for the pursuit of pleasures, who is uncontrolled in one's senses, immoderate in eating, indolent and dissipated.
No comments:
Post a Comment