Saturday, January 16, 2016
Friday, January 15, 2016
अशोक चक्र - आइये जाने बुद्ध धम्म के इस प्रतीक को
अशोकचक्र भारतीयता का प्रतीकचिन्ह है। इस खास चिन्ह का भारत में मिलना/ दिखना जितना आम है, इसकी चौबीस शलाकाओं के बारे में जानकारी उतनी आम नहीं। मजे की बात तो यह कि कुछ समझदार लोगों ने तो इसके कुछ और ही नए अर्थ गढ़ लिए हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीय सम्राट अशोक को नाम से तो जानते हैं, अशोक चक्र को झंडे से लेकर मुद्राओं तक में बड़ी शान से लगाते हैं, परन्तु अशोक की महानता के कारक इस चक्र के बारे में नहीं। बुद्ध के बताए धम्म पर आधारित इस प्रतीक को जाने, समझे, और जीवन में उतारे बगैर एक अन्धविश्वास अथवा फैशन की भाँति क्यों ढो रहे हैं?
1 Avidyā (अविद्या)- lack of awareness -
2 Sanskāra (संखारा)- conditioning of mind unknowingly
3 Vijñāna (विज्ञान)- consciousness
4 Nāmarūpa (नामरूप)- name and form (constituent elements of mental and physical existence)
5 Ṣaḍāyatana (षड़ायतन)- six senses (eye, ear, nose, tongue, body, and mind) -
6 Sparśa (स्पर्श)- contact
7 Vedanā (वेदना)- sensation
8 Tṛṣṇā (तृष्णा)- thirst
9 Upādāna (उपादान)- grasping
10 Bhava (भव)- coming to be
11 Jāti (जाति)- being born -
12 Jarāmaraṇa (जरामरणा)- old age and death - corpse being carried.
These 12 in reverse represent a total 24 spokes representing the dhamma.
Thursday, January 14, 2016
ताओ - Tao
कुछ है जो अपरिभाषित है
फ़िर भी सम्पूर्ण और शाश्वत है
जो धरती और आकाश से भी पहले से ही है
शांति और अपार
स्थिर है शुरुआत से
और फ़िर भी मौजूद है
सब चीजो की उत्त्पत्ति का कारण है
मैं इसका नाम नही जानता
पर इसे ताओ के नाम से कहता हूँ
~लाओत्सु~
Wednesday, January 13, 2016
वसलसुत्तं–कौन है जातिच्युत ( Vasala Sutta: Discourse on Outcasts )
ऐसा मैने सुना । एक समय भगवान् श्रावस्ती मे अनाथपिण्डक के जेतवाराम में विहार करते थे । तब भगवान् पूर्वान्ह समय पात्र और चीवर पहनकर श्रावस्ती में भिक्षाटन के लिये प्रविष्ट हुये । उस समय अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण के घर मे अग्नि प्रज्विल्लित हो रही थी , जिसमे आहुति की सामाग्री डाली गई थी । अग्निकभारद्धाज ब्राहम्ण ने भगवान् को दूर से ही आते देखा । देखकर भगवान् से यह कहा – “ वही मुण्डक ! वही श्रमणक ! वही वृषलक ! ठहरो । ” ऐसा कहने पर भगवान् ने अग्निकभारद्धाज से ऐसा कहा – “ ब्राहम्ण क्या तुम वृषल ( नीच ) या वृषल बनाने वाली बातों को जानते हो । ? ”
‘ हे गौतम मै वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को नही मानता हूँ । अच्छा हो कि हे गौतम ! आप मुझे वैसा धर्मोपदेश दें ताकि मै वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को मान और जान सकूँ । ’
तो ब्राहम्ण भली भाँति सुनो और मन में, धारण करॊ ।
बहुत अच्छा , कहकर अग्निकभारद्धाज ने भगवान को उत्तर दिया । तब भगवान् ने यह कहा -
१. जो नर क्रोधी , बँधे पैर वाला , बहुत ईर्ष्यालु , मिथ्यादृष्टि वाला और मा्यावी है , उसे वृषक जानें ।
२. जो योनिज या अण्डज किसी भी प्राणी की हिंसा करता है , जिसे प्राणियों के प्रति दया नही है , उसे वृषल जानें ।
३. जो ग्रामों और कस्बों को नष्ट करता और घेरता है , जो अत्याचारी के रुप मे प्रसिद्ध है , उसे वृषल जानें ।
४. जो ग्राम या अरण्य मे जो दूसरॊ की अपनी सम्पति है , उसे चोरी से ले जाता है , उसे वृषल जानें ।
५. जो ऋण लेकर माँगने पर “ तेरा ऋण नही है ” कहकर भागता है , उसे वृषल जानें ।
६. जो किसी चीज की इच्छा से मार्ग में, चलते हुये व्यक्ति को मारकर कुछ ले लेता है , उसे वृषल जानें ।
७. जो नर अपने या दूसरे के धन के लिये झूठी गवाही देता है , उसे वृषल जानें ।
८. जो जबरद्स्ती या प्रेम से भाई – बन्धुओं या मित्रों की स्त्रियों के साथ दिखाई देता है ,उसे वृषल जानें ।
९. जो समर्थ होते हुये भी अपने माता पिता , बूढे –पुरनियाँ का भरण पोषण नही करता है , उसे वृषल जानें ।
१०. जो माता –पिता , भाई , बहिन या सासु को मारता या कडे वचन से क्रोध करता है , उसे वृषल जानें ।.
११. जो भलाई की बात पूछने पर बुराई का रास्ता दिखाता है , उसे वृषल जानें ।
१२. जो पाप कर्म कर के “ लोग मुझे न जानें “ – ऐसा चाहता है , जो छिपे कर्म करने वाला है , उसे वृषल जानें ।
१३. जो दूसरे के घर जाकर स्वादिष्ट भोजन करता है और उसके आने पर स्वागत सत्कार नही करता , उसे वृषल जानें ।
१४. जो ब्राहम्ण , श्रमण , या भिखारी को झूठ बोलकर धोखा देता है , उसे वृषल जानें ।
१५. जो भोजन के समय आये श्रमण या ब्राहम्ण से क्रोध से बोलता है और उसे कुछ नही देता है , उसे वृषल जानें ।
१६. जो मोह से मोहित होकर किसी चीज को चाहता और झूठ बोलता है , उसे वृषल जानें ।
१७. जो अपनी बडाई करता है और दूसरे की निन्दा करता है , और अपने उस अभिमान से गिर गया हो , उसे वृषल जानें ।
१८. जो क्रोधी , कंजूस और बुरी इच्छा वाला , कृपण , शठ , निर्लज्ज और असंकोची है , उसे वृषल जानें ।
१९. जो बुद्ध और उनके प्रवजित अथवा गृहस्थ शिष्यों को गाली देता है , उसे वृषल जानें ।
२०. जो अर्हत न होते हुये भी अपने को अर्हत बताता है , वह ब्रह्म सहित सारे लोक मे चोर है और वह अधम वृषल है । मैने इतने वृषलों को तुमको बतलाया है ।
२१. कोई जाति से वृषल नही होता और न जाति से ब्राहम्ण होता है । कर्म से कोई वृषल होता है और कर्म से ब्राहम्ण भी होता है ।
२२. इस उदाहरण से भी जानॊ कि चण्डाल पुत्र सोपाक जो मातंग नाम से प्रसिद्ध था ।
२३. उस मांतग ने जिस महान यश को प्राप्त किया , वह दूसरों के लिये बहुत ही दुर्लभ था । उसकी सेवा मे बहुत ही छ्त्रिय और ब्राहम्ण आया करते थे ।
२४. वह कामराग को त्याग कर दिव्य रथ मे सवार होकर , शुद्ध महापथ से ब्र्ह्मलोक चला गया । उसके ब्रह्म लोक मे उत्पन्न होने मे कोई जाति उसको रोक न पायी ।
२५. जो वेद पाठियों के घर में वेद मंत्रो के जानकार ब्राहम्ण हैं , वे भी नित्य पाप कर्मॊ में संलग्न दिखाई देते हैं ।
२६. इस जन्म मे ही उनकी निन्दा होती है और परलोक मे दुर्गति को प्राप्त होते हैं । उन्हें दुर्गति और निन्दा से जाति बचा नही पाती ।
२७. जाति से कोई न वृषल ( नीच ) होता है और न जाति से कोई ब्राह्म्ण होता है । कर्म से ही कोई वृषल होता है और कर्म से ही ब्राहम्ण होता है ।
ऐसा कहने पर अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण ने भगवान् से ऐसा कहा – “ आशचर्य है , हे गौतम , जैसे कि हे गौतम ! उल्टे हुये बर्तन को सीधा कर दे , ढँके हुये को उधाड दे , रास्ता भूले को रास्ता दिखा दे अथवा अन्धकार में तेल के प्रदीप को धारण करे , जिससे कि आँख वाले लोग चीजॊ को देख सके , ऐसे ही आप गौतम द्वारा अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है । यह मै आप गौतम की शरण मे जाता हूँ , धर्म और भिक्षुसंघ की भी । मुझे आप गौतम आज से ही जीवन पर्यन्त शरणागत उपासक धारण करें ।
Tuesday, January 12, 2016
Monday, January 11, 2016
धम्मपद 146 जरावग्गो -
Photo credit : Supriya Agarwal
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ,कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोग तुम ज्ञानरूपी प्रकाशपुंज की खोज क्यों नही करते ?
धम्मपद 146 जरावग्गो