Wednesday, January 13, 2016

वसलसुत्तं–कौन है जातिच्‍युत ( Vasala Sutta: Discourse on Outcasts )


ऐसा मैने सुना । एक समय भगवान्‌ श्रावस्ती मे अनाथपिण्डक के जेतवाराम में विहार करते थे । तब भगवान्‌ पूर्वान्ह समय पात्र और चीवर पहनकर श्रावस्ती में भिक्षाटन के लिये प्रविष्ट हुये । उस समय अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण के घर मे अग्नि प्रज्विल्लित हो रही थी , जिसमे आहुति की सामाग्री डाली गई थी । अग्निकभारद्धाज ब्राहम्ण ने भगवान्‌ को दूर से ही आते देखा । देखकर भगवान्‌ से यह कहा – “ वही मुण्डक ! वही श्रमणक ! वही वृषलक ! ठहरो । ” ऐसा कहने पर भगवान्‌ ने अग्निकभारद्धाज से ऐसा कहा – “ ब्राहम्ण क्या तुम वृषल ( नीच ) या वृषल बनाने वाली बातों को जानते हो । ? ”
‘ हे गौतम मै वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को नही मानता हूँ । अच्छा हो कि हे गौतम ! आप मुझे वैसा धर्मोपदेश दें ताकि मै  वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को मान और जान सकूँ । ’
तो ब्राहम्ण भली भाँति सुनो और मन में, धारण करॊ ।
बहुत अच्छा , कहकर अग्निकभारद्धाज ने भगवान को उत्तर दिया । तब भगवान्‌ ने यह कहा -
१. जो नर क्रोधी , बँधे पैर वाला , बहुत ईर्ष्यालु , मिथ्यादृष्टि वाला और  मा्यावी है , उसे वृषक जानें ।
२. जो योनिज या अण्डज किसी भी प्राणी की हिंसा करता है , जिसे प्राणियों के प्रति दया नही है , उसे वृषल जानें ।
३. जो ग्रामों और कस्बों को नष्ट करता और घेरता है , जो अत्याचारी के रुप मे प्रसिद्ध है , उसे वृषल जानें ।
४. जो ग्राम या अरण्य मे जो दूसरॊ की अपनी सम्पति है , उसे चोरी से ले जाता है , उसे  वृषल जानें ।
५. जो ऋण लेकर माँगने पर “ तेरा ऋण नही है ” कहकर भागता है , उसे वृषल जानें ।
६. जो किसी चीज की इच्छा से मार्ग में, चलते हुये व्यक्ति  को मारकर कुछ ले लेता है , उसे वृषल जानें ।
७. जो नर अपने या दूसरे के धन के लिये झूठी गवाही देता है , उसे वृषल जानें ।
८. जो जबरद्स्ती या प्रेम से भाई – बन्धुओं  या मित्रों की स्त्रियों के साथ दिखाई देता है ,उसे वृषल जानें ।
९. जो समर्थ होते हुये भी अपने माता पिता , बूढे –पुरनियाँ का भरण पोषण नही करता है , उसे वृषल जानें ।
१०. जो माता –पिता , भाई , बहिन या सासु को मारता या कडे वचन से क्रोध करता है , उसे वृषल जानें ।. 
११. जो भलाई की बात पूछने पर बुराई का रास्ता दिखाता है ,  उसे वृषल जानें ।
१२. जो पाप कर्म कर के “ लोग मुझे न जानें “ – ऐसा चाहता है , जो  छिपे कर्म करने वाला है , उसे वृषल जानें ।
१३. जो दूसरे के घर जाकर स्वादिष्ट भोजन करता है और उसके आने पर स्वागत सत्कार नही करता , उसे वृषल जानें ।
१४. जो ब्राहम्ण , श्रमण , या भिखारी को झूठ बोलकर धोखा देता है , उसे वृषल जानें ।
१५. जो भोजन के समय आये श्रमण या ब्राहम्ण से क्रोध से बोलता है और उसे कुछ नही देता है , उसे वृषल जानें ।
१६. जो मोह से मोहित होकर किसी चीज को चाहता और झूठ बोलता है , उसे वृषल जानें ।
१७. जो अपनी बडाई करता है और दूसरे की निन्दा करता है , और अपने उस अभिमान से गिर गया हो , उसे वृषल जानें ।
१८. जो क्रोधी , कंजूस और बुरी इच्छा वाला , कृपण , शठ , निर्लज्ज और असंकोची है , उसे वृषल जानें ।
१९. जो बुद्ध और उनके प्रवजित अथवा गृहस्थ शिष्यों को गाली देता है , उसे वृषल जानें ।
२०. जो अर्हत न होते हुये भी अपने को अर्हत बताता है , वह ब्रह्म सहित सारे लोक मे चोर है और वह अधम वृषल है । मैने इतने वृषलों को तुमको बतलाया है ।
२१. कोई जाति  से वृषल नही होता और न जाति से ब्राहम्ण होता है । कर्म से कोई वृषल होता है और कर्म से ब्राहम्ण भी होता है ।
२२. इस उदाहरण से भी जानॊ कि चण्डाल पुत्र सोपाक जो मातंग नाम से प्रसिद्ध था ।
२३. उस मांतग ने जिस महान यश को प्राप्त किया , वह दूसरों के लिये बहुत ही दुर्लभ था । उसकी सेवा मे बहुत ही छ्त्रिय और ब्राहम्ण आया करते थे ।
२४. वह कामराग को त्याग कर दिव्य रथ मे सवार होकर , शुद्ध महापथ से ब्र्ह्मलोक चला गया । उसके ब्रह्म लोक मे उत्पन्न होने मे कोई जाति उसको रोक न पायी ।
२५. जो वेद पाठियों के घर में वेद मंत्रो के जानकार ब्राहम्ण हैं , वे भी नित्य पाप कर्मॊ में संलग्न दिखाई देते हैं ।
२६. इस जन्म मे ही उनकी निन्दा होती है और परलोक मे दुर्गति को प्राप्त होते हैं । उन्हें दुर्गति और निन्दा से जाति बचा नही पाती ।
२७. जाति से कोई न वृषल ( नीच ) होता है और न जाति से कोई ब्राह्म्ण होता है । कर्म से ही कोई वृषल होता है और कर्म से ही ब्राहम्ण होता है ।
ऐसा कहने पर अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण ने भगवान्‌ से ऐसा कहा – “ आशचर्य है , हे गौतम , जैसे कि हे गौतम ! उल्टे हुये बर्तन को सीधा कर दे , ढँके हुये को उधाड दे , रास्ता भूले को रास्ता दिखा दे अथवा अन्धकार में तेल के प्रदीप को धारण करे , जिससे कि आँख वाले लोग चीजॊ को देख सके , ऐसे ही आप गौतम द्वारा अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है । यह मै आप गौतम की शरण मे जाता हूँ , धर्म और भिक्षुसंघ की भी । मुझे आप गौतम आज से ही जीवन पर्यन्त शरणागत उपासक धारण करें ।

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