Showing posts with label बुद्ध वाणी. Show all posts
Showing posts with label बुद्ध वाणी. Show all posts

Thursday, February 11, 2016

धम्मपद गाथा 146




को नु हासो [किन्‍नु हासो (क॰)] किमानन्दो, निच्‍चं पज्‍जलिते सति।
अन्धकारेन ओनद्धा, पदीपं न गवेसथ॥

जलै जहाँ जब नित्य तौ, कहँ आनन्द हुलास ?
तम में तुम खोजत न किमि , दीप जु देत प्रकाश ॥

जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ? कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोगों , तुम ज्ञान रूपी प्रकाश द्धीप की खोज क्यों नही करते ?

What is laughter, what is joy, when the world is ever burning? Shrouded by darkness, would you not seek the light?


Wednesday, February 10, 2016

धम्मपद गाथा 121


मावमञ्‍ञेथ [माप्पमञ्‍ञेथ (सी॰ स्या॰ पी॰)] पापस्स, न मन्तं [न मं तं (सी॰ पी॰), न मत्तं (स्या॰)] आगमिस्सति।
उदबिन्दुनिपातेन, उदकुम्भोपि पूरति।
बालो पूरति [पूरति बालो (सी॰ क॰), आपूरति बालो (स्या॰)] पापस्स, थोकं थोकम्पि [थोक थोकम्पि (सी॰ पी॰)] आचिनं॥
‘ पाप न आये मम निकट ’ अपने मन यूं धार ।
पाप कर्म कूँ जानि कें , करै नही सत्कार ॥
टपकति पानी बूँद ज्यों , घडा भरे केहि काल ।
नैक-नैक त्यों पाप अपि , संचित करले बाल ॥
धम्मपद गाथा 121