Sunday, January 31, 2016
Saturday, January 30, 2016
Thursday, January 28, 2016
Wednesday, January 27, 2016
हम सब सिर्फ भारतीय है , पहले और अंत में भी - डा. अम्बेडकर
We are Indians, firstly and lastly.
हम सब सिर्फ भारतीय हैं , पहले और अंत में भी।
डा. बी. आर. अम्बेडकर
Tuesday, January 26, 2016
Monday, January 25, 2016
Sunday, January 24, 2016
Saturday, January 23, 2016
Friday, January 22, 2016
Thursday, January 21, 2016
Wednesday, January 20, 2016
वर्तमान में जीना - तिक नयात हन्ह
वर्तमान मे रहने का अर्थ यह नही है कि आप अतीत को भूल जायें या भविष्य की जिम्मेदारी से दूर चले जायें । बल्कि इसका अर्थ यह है कि आप अतीत को लेकर पछतावा न करें और भविष्य को लेकर चिंता न करें । अगर आप सचेतावस्था के साथ अतीत को देखेगें तो आप पायेगें कि अतीत आप की यात्रा में एक जांच का उद्देशय हो सकता है कि ऐसी परिस्थतियाँ क्यों और कैसे उत्पन्न हुयी । अतीत मे देख कर आप कई अंतर्दृष्टियों को प्राप्त भी कर सकते हैं लेकिन साथ ही में यह आवशयक है कि आप की दृष्टि वर्तमान समय पर सचेतावस्था के साथ रहे । ~तिक न्यात हन्ह, The Art of Power~
“To dwell in the here and now does not mean you never think about the past or responsibly plan for the future. The idea is simply not to allow yourself to get lost in regrets about the past or worries about the future. If you are firmly grounded in the present moment, the past can be an object of inquiry, the object of your mindfulness and concentration. You can attain many insights by looking into the past. But you are still grounded in the present moment.”
― Thich Nhat Hanh, The Art of Power
http://preachingsofbuddha.blogspot.in/2013/09/pastpresentandfuture.html
Tuesday, January 19, 2016
Perfection - Buddha
When you realize how perfect everything is, you will tilt your head back and laugh at the sky. – Buddha.
Monday, January 18, 2016
True friend - Buddha
An insincere and evil friend is more to be feared than a wild beast; a wild beast may wound your body, but an evil friend will wound your mind. – Buddha.
Images shared under Creative Commons by Hartwig HKD, on Flickr
Sunday, January 17, 2016
Saturday, January 16, 2016
Friday, January 15, 2016
अशोक चक्र - आइये जाने बुद्ध धम्म के इस प्रतीक को
अशोकचक्र भारतीयता का प्रतीकचिन्ह है। इस खास चिन्ह का भारत में मिलना/ दिखना जितना आम है, इसकी चौबीस शलाकाओं के बारे में जानकारी उतनी आम नहीं। मजे की बात तो यह कि कुछ समझदार लोगों ने तो इसके कुछ और ही नए अर्थ गढ़ लिए हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीय सम्राट अशोक को नाम से तो जानते हैं, अशोक चक्र को झंडे से लेकर मुद्राओं तक में बड़ी शान से लगाते हैं, परन्तु अशोक की महानता के कारक इस चक्र के बारे में नहीं। बुद्ध के बताए धम्म पर आधारित इस प्रतीक को जाने, समझे, और जीवन में उतारे बगैर एक अन्धविश्वास अथवा फैशन की भाँति क्यों ढो रहे हैं?
1 Avidyā (अविद्या)- lack of awareness -
2 Sanskāra (संखारा)- conditioning of mind unknowingly
3 Vijñāna (विज्ञान)- consciousness
4 Nāmarūpa (नामरूप)- name and form (constituent elements of mental and physical existence)
5 Ṣaḍāyatana (षड़ायतन)- six senses (eye, ear, nose, tongue, body, and mind) -
6 Sparśa (स्पर्श)- contact
7 Vedanā (वेदना)- sensation
8 Tṛṣṇā (तृष्णा)- thirst
9 Upādāna (उपादान)- grasping
10 Bhava (भव)- coming to be
11 Jāti (जाति)- being born -
12 Jarāmaraṇa (जरामरणा)- old age and death - corpse being carried.
These 12 in reverse represent a total 24 spokes representing the dhamma.
Thursday, January 14, 2016
ताओ - Tao
कुछ है जो अपरिभाषित है
फ़िर भी सम्पूर्ण और शाश्वत है
जो धरती और आकाश से भी पहले से ही है
शांति और अपार
स्थिर है शुरुआत से
और फ़िर भी मौजूद है
सब चीजो की उत्त्पत्ति का कारण है
मैं इसका नाम नही जानता
पर इसे ताओ के नाम से कहता हूँ
~लाओत्सु~
Wednesday, January 13, 2016
वसलसुत्तं–कौन है जातिच्युत ( Vasala Sutta: Discourse on Outcasts )
ऐसा मैने सुना । एक समय भगवान् श्रावस्ती मे अनाथपिण्डक के जेतवाराम में विहार करते थे । तब भगवान् पूर्वान्ह समय पात्र और चीवर पहनकर श्रावस्ती में भिक्षाटन के लिये प्रविष्ट हुये । उस समय अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण के घर मे अग्नि प्रज्विल्लित हो रही थी , जिसमे आहुति की सामाग्री डाली गई थी । अग्निकभारद्धाज ब्राहम्ण ने भगवान् को दूर से ही आते देखा । देखकर भगवान् से यह कहा – “ वही मुण्डक ! वही श्रमणक ! वही वृषलक ! ठहरो । ” ऐसा कहने पर भगवान् ने अग्निकभारद्धाज से ऐसा कहा – “ ब्राहम्ण क्या तुम वृषल ( नीच ) या वृषल बनाने वाली बातों को जानते हो । ? ”
‘ हे गौतम मै वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को नही मानता हूँ । अच्छा हो कि हे गौतम ! आप मुझे वैसा धर्मोपदेश दें ताकि मै वृषल या वृषल बानाने वाली बातों को मान और जान सकूँ । ’
तो ब्राहम्ण भली भाँति सुनो और मन में, धारण करॊ ।
बहुत अच्छा , कहकर अग्निकभारद्धाज ने भगवान को उत्तर दिया । तब भगवान् ने यह कहा -
१. जो नर क्रोधी , बँधे पैर वाला , बहुत ईर्ष्यालु , मिथ्यादृष्टि वाला और मा्यावी है , उसे वृषक जानें ।
२. जो योनिज या अण्डज किसी भी प्राणी की हिंसा करता है , जिसे प्राणियों के प्रति दया नही है , उसे वृषल जानें ।
३. जो ग्रामों और कस्बों को नष्ट करता और घेरता है , जो अत्याचारी के रुप मे प्रसिद्ध है , उसे वृषल जानें ।
४. जो ग्राम या अरण्य मे जो दूसरॊ की अपनी सम्पति है , उसे चोरी से ले जाता है , उसे वृषल जानें ।
५. जो ऋण लेकर माँगने पर “ तेरा ऋण नही है ” कहकर भागता है , उसे वृषल जानें ।
६. जो किसी चीज की इच्छा से मार्ग में, चलते हुये व्यक्ति को मारकर कुछ ले लेता है , उसे वृषल जानें ।
७. जो नर अपने या दूसरे के धन के लिये झूठी गवाही देता है , उसे वृषल जानें ।
८. जो जबरद्स्ती या प्रेम से भाई – बन्धुओं या मित्रों की स्त्रियों के साथ दिखाई देता है ,उसे वृषल जानें ।
९. जो समर्थ होते हुये भी अपने माता पिता , बूढे –पुरनियाँ का भरण पोषण नही करता है , उसे वृषल जानें ।
१०. जो माता –पिता , भाई , बहिन या सासु को मारता या कडे वचन से क्रोध करता है , उसे वृषल जानें ।.
११. जो भलाई की बात पूछने पर बुराई का रास्ता दिखाता है , उसे वृषल जानें ।
१२. जो पाप कर्म कर के “ लोग मुझे न जानें “ – ऐसा चाहता है , जो छिपे कर्म करने वाला है , उसे वृषल जानें ।
१३. जो दूसरे के घर जाकर स्वादिष्ट भोजन करता है और उसके आने पर स्वागत सत्कार नही करता , उसे वृषल जानें ।
१४. जो ब्राहम्ण , श्रमण , या भिखारी को झूठ बोलकर धोखा देता है , उसे वृषल जानें ।
१५. जो भोजन के समय आये श्रमण या ब्राहम्ण से क्रोध से बोलता है और उसे कुछ नही देता है , उसे वृषल जानें ।
१६. जो मोह से मोहित होकर किसी चीज को चाहता और झूठ बोलता है , उसे वृषल जानें ।
१७. जो अपनी बडाई करता है और दूसरे की निन्दा करता है , और अपने उस अभिमान से गिर गया हो , उसे वृषल जानें ।
१८. जो क्रोधी , कंजूस और बुरी इच्छा वाला , कृपण , शठ , निर्लज्ज और असंकोची है , उसे वृषल जानें ।
१९. जो बुद्ध और उनके प्रवजित अथवा गृहस्थ शिष्यों को गाली देता है , उसे वृषल जानें ।
२०. जो अर्हत न होते हुये भी अपने को अर्हत बताता है , वह ब्रह्म सहित सारे लोक मे चोर है और वह अधम वृषल है । मैने इतने वृषलों को तुमको बतलाया है ।
२१. कोई जाति से वृषल नही होता और न जाति से ब्राहम्ण होता है । कर्म से कोई वृषल होता है और कर्म से ब्राहम्ण भी होता है ।
२२. इस उदाहरण से भी जानॊ कि चण्डाल पुत्र सोपाक जो मातंग नाम से प्रसिद्ध था ।
२३. उस मांतग ने जिस महान यश को प्राप्त किया , वह दूसरों के लिये बहुत ही दुर्लभ था । उसकी सेवा मे बहुत ही छ्त्रिय और ब्राहम्ण आया करते थे ।
२४. वह कामराग को त्याग कर दिव्य रथ मे सवार होकर , शुद्ध महापथ से ब्र्ह्मलोक चला गया । उसके ब्रह्म लोक मे उत्पन्न होने मे कोई जाति उसको रोक न पायी ।
२५. जो वेद पाठियों के घर में वेद मंत्रो के जानकार ब्राहम्ण हैं , वे भी नित्य पाप कर्मॊ में संलग्न दिखाई देते हैं ।
२६. इस जन्म मे ही उनकी निन्दा होती है और परलोक मे दुर्गति को प्राप्त होते हैं । उन्हें दुर्गति और निन्दा से जाति बचा नही पाती ।
२७. जाति से कोई न वृषल ( नीच ) होता है और न जाति से कोई ब्राह्म्ण होता है । कर्म से ही कोई वृषल होता है और कर्म से ही ब्राहम्ण होता है ।
ऐसा कहने पर अग्निकभारद्धाज ब्राह्म्न्ण ने भगवान् से ऐसा कहा – “ आशचर्य है , हे गौतम , जैसे कि हे गौतम ! उल्टे हुये बर्तन को सीधा कर दे , ढँके हुये को उधाड दे , रास्ता भूले को रास्ता दिखा दे अथवा अन्धकार में तेल के प्रदीप को धारण करे , जिससे कि आँख वाले लोग चीजॊ को देख सके , ऐसे ही आप गौतम द्वारा अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है । यह मै आप गौतम की शरण मे जाता हूँ , धर्म और भिक्षुसंघ की भी । मुझे आप गौतम आज से ही जीवन पर्यन्त शरणागत उपासक धारण करें ।
Tuesday, January 12, 2016
Monday, January 11, 2016
धम्मपद 146 जरावग्गो -
Photo credit : Supriya Agarwal
जहाँ प्रतिक्षण सब कुछ जल रहा हो , वहाँ कैसी हँसी ,कैसा आनन्द ? ऐ अविधारूपी अंधकार से घिरे हुए भोले लोग तुम ज्ञानरूपी प्रकाशपुंज की खोज क्यों नही करते ?
धम्मपद 146 जरावग्गो
Sunday, January 10, 2016
Saturday, January 9, 2016
सिगालोवाद सुत्त - Sigalovada Sutta
सिगालोवाद सुत्त : छ: दिशाये और छ: प्रकार के रिशतों को बचाना ( ऊपर चित्र से )
छ: दिशाये:
१. जीवन का आरम्भ –हमारा बचपन । पूर्व दिशा बच्चॊ को तथा माता पिता को दर्शाती है ।
२. युवा होने पर अगला धरातल हमारा विधालय – दक्षिण दिशा विधार्थी तथा अध्यापकों को दर्शाती है ।
३. युवा –वयस्क होने पर परिवार का आरम्भ । पशिचम दिशा पति-पत्नी का प्रतीक है ।
४. आगे बढकर , हमारा सामाजिक जीवन । उत्तर दिशा मित्र तथा सहयोगी को दर्शाती है ।
५. कमाऊ होने पर हमारा व्यपार तथा अन्य कार्य होते हैं । नीचे की दिशा मालिकों , नियोक्ता तथा कर्मचारियों का प्रतीक है ।
६. जब हम जीवन मे परिपक्व होते हैं तब हम उच्च आर्द्श ढूँढते हैं । उत्तर की दिशा साधारण लोगों को तथा आध्यात्मिक गुरुऒं को दर्शाती है ।
दीघ निकाय के सिगाल सुत्त से पता चलता है कि सिगाल नामक युवक हठीला , भौतिकवादी और जिद्दी स्वभाव का युवक था । राजगृह के वेलुवन में विहार करते हुये भिक्षाटन के लिये निकले बुद्ध की मुलाकात श्रेष्ठिपुत्र सिगाल से होती है जो छह दिशाओं को झुककर नमस्कार कर रहा था । बुद्ध के पूछने पर उसने बताया कि उसके पिता की अन्तिम इच्छा अनुसार वह यह अनुष्ठान नियमित रुप से करता है लेकिन न तो उसको इस पर विशवास है और न ही वह इसका अर्थ जानता है ।
भगवान् बुद्ध नें सिगाल को उपदेश देते हुये कहा कि उनके धम्म में पूरब का मतलब माता- पिता , दक्षिण का अर्थ गुरु और शिक्षक , पशिचम का अर्थ पत्नी और बच्चे , उत्तर का मतलब मित्र और रिशतेदार , धरती का अर्थ कर्मचारी , नौकर-चाकर और आसामान का अर्थ साधु संत, महापुरुष तथा आर्दश व्यक्ति होता है । बुद्ध ने कहा कि छ: दिशाओं की पूजा इस तरह से करनी चाहिये
Friday, January 8, 2016
Thursday, January 7, 2016
धम्मपद-अप्पमाद वग्गो गाथा 29 -उत्साही बनें
आलस्य रहित,उत्साही बने रहते हुए सदैव जाग्रत रहने की यह भगवान बुद्ध की देशना लोगों की प्रगति हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है। कमजोर घोड़े का उदाहरण भी सीधा सादा , सरल और रोचक है ।
Attitude -Dalai Lama
Dalai Lama says: "I believe each human being has the potential to change, to transform one’s own attitude, no matter how difficult the situation."
Wednesday, January 6, 2016
Tuesday, January 5, 2016
By your own effects waken yourself, watch yourself. And live joyfully. You are the master. – Buddha
" By your own effects waken yourself, watch yourself. And live joyfully. You are the master. "
~~ Buddha ~~
Image Source : Joelannesley.com
Monday, January 4, 2016
धम्मपद गाथा 1
मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कंव वहतो पदं॥
मन अगुआ है प्रवृति का , और वही आधार ।
मन ही से होता सदा , प्रवृति का संचार ॥
दूषित मन-वच-कर्म के , दुक्ख चलै अनुसार ।
चलता वाहन-चक्र ज्यों , बैलनु पाँ पिछार ॥
धम्मपद गाथा 1 यमकवर्ग
Sunday, January 3, 2016
Real definition of Dhamma
Buddha says: "Here bhikkhus, some misguided men learn the Dhamma–discourses, stanzas, expositions, verses, exclamations, sayings, birth stories, marvels, and answers to questions–but having learned the Dhamma, they do not examine the meaning of those teachings with wisdom. Not examining the meaning of those teachings with wisdom, they do not gain a reflective acceptance of them. Instead they learn the Dhamma only for the sake of criticising others and for winning in debates, and they do not experience the good for the sake of which they learned the Dhamma."
Saturday, January 2, 2016
Friday, January 1, 2016
नव वर्ष 2016 की शुभ आशीष
सकल विश्व के सारे प्राणी , मंगल लाभी होय रे ।
जन जन मंगल जन जन मंगल , सबका मंगल होये रे ।।
आइये प्रण करें
नव वर्ष 2016 में बेहतर जीवन के लिए 20 टिप्स :
1. प्रतिदिन 10 से 30 मिनट टहलने की आदत बनायें. टहलते समय चेहरे पर मुस्कराहट रखें.
2. प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट चुप रहकर बैठें.
3. पिछले साल की तुलना में इस साल ज्यादा पुस्तकें पढ़ें.
4. 70 साल की उम्र से अधिक आयु के बुजुर्गों और 6 साल से कम आयु के बच्चों के साथ भी कुछ समय व्यतीत करें.
5. प्रतिदिन खूब पानी पियें.
6. प्रतिदिन कम से कम तीन लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करें.
7. गपशप पर अपनी कीमती ऊर्जा बर्बाद न करें.
8. अतीत के मुद्दों को भूल जायें, अतीत की गलतियों को अपने जीवनसाथी को याद न दिलायें.
9. एहसास कीजिये कि जीवन एक स्कूल है और आप यहां सीखने के लिये आये हैं. जो समस्याएं आप यहाँ देखते हैं, वे पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं.
10. एक राजा की तरह नाश्ता, एक राजकुमार की तरह दोपहर का भोजन और एक भिखारी की तरह रात का खाना खायें.
11. दूसरों से नफरत करने में अपना समय व ऊर्जा बर्बाद न करें. नफरत के लिए ये जीवन बहुत छोटा है.
12. आपको हर बहस में जीतने की जरूरत नहीं है, असहमति पर भी अपनी सहमति दें.
13. अपने जीवन की तुलना दूसरों से न करें.
14. गलती के लिये गलती करने वाले को माफ करना सीखें.
15. ये सोचना आपका काम नहीं कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं.
16. समय ! सब घाव भर देता है.
17. ईर्ष्या करना समय की बर्बादी है. जरूरत का सब कुछ आपके पास है.
18. प्रतिदिन दूसरों का कुछ भला करें.
19. जब आप सुबह जगें तो अपने माता-पिता को धन्यवाद दें, क्योंकि माता-पिता की कुशल परवरिश के कारण आप इस दुनियां में हैं.
20. हर उस व्यक्ति को ये संदेश शेयर करें जिसकी आप परवाह करते हैं.🌞..
साल...
ज़रूर बदल रहा है
लेकिन साथ नहीं...
🌹..
स्नेह सदैव बना रहे...