Monday, January 4, 2016

धम्मपद गाथा 1




मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्‍कंव वहतो पदं॥

मन अगुआ है प्रवृति का , और वही आधार ।
मन ही से होता सदा , प्रवृति का संचार ॥
दूषित मन-वच-कर्म के , दुक्ख चलै अनुसार ।
चलता वाहन-चक्र ज्यों , बैलनु पाँ पिछार ॥

धम्मपद गाथा 1 यमकवर्ग


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