Wednesday, May 14, 2014

बुद्ध पुर्णिमा की शुभकामनायें...


युद्ध नहीं अब बुद्ध चहिए
मानव का मन शुद्ध चाहिए

सत्य, अहिंसा, विश्व बंधुता, करुणा, मैत्री का हो प्रसार।
पंचशील अष्टांग मार्ग का पुनः जग में हो विस्तार
समता, ममता, और क्षमता, से, ऐसा वीर प्रबुद्ध चाहिए

युध्द नहीं अब बुध्द चहिए
मानव का मन शुध्द चाहिए

कपट, कुटिलता, काम वासना, घेर रगी है मानव को
कानाचार वा दुराचार ने, जन्म दिया है दानव को
न्याय, नियम का पालन हो अब, सत्कर्मो की बुध्दि चाहिए

युध्द नहीं अब बुद्ध चहिए
मानव का मन शुद्ध चाहिए

मंगलमय हो सब घर आँगन, सब द्वार  बजे शहनाई
शस्य श्यामता हो सब धरती, मानवता ले अंगड़ाई
मिटे दीनता, हटे हीनता, सारा जग सम्रद्ध चहिए

युध्द नहीं अब बुद्ध चहिए

मानव का मन शुद्ध चाहिए

अनित्यता - Impermanence (Anicca)

सब्बे संङ्खारा अनिच्चाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया।। (धम्मपद २७७)
सारे संस्कार अनित्य हैं यानी जो हो रहा है वह नष्ट होता ही है । इस सच्चाई को जब कोई विपशयना से देख लेता है , तब उसको दुखों से निर्वेद प्राप्त होता है अथात दु:ख भाव से भोक्ताभाव टूट जाता है । यह ही है शुद्ध विमुक्ति का मार्ग !!    धम्मपद २७७

Tuesday, May 13, 2014

The Noble path - Buddha

Saturday, January 19, 2013

Meaning/purpose of life?

72840_4471801867127_900632071_n (1)

Once a man asked to Buddha "what is meaning/purpose of life?"Buddha simply exclaimed "Life has no meaning in itself but itself is an opportunity to make it meaningful".

Monday, March 14, 2011

Daily words of the Buddha #14-3-2011#

पोराणमेतं अतुल, नेतं अज्‍जतनामिव।

निन्दन्ति तुण्हिमासीनं, निन्दन्ति बहुभाणिनं।

मितभाणिम्पि निन्दन्ति, नत्थि लोके अनिन्दितो॥

                               धम्मपद २२७

हे अतुल , यह पुरानी बात है , आज की नही , लोग चुप रहने वाले की भी निंदा करते हैं , बहुत बोलने वाले की भी निंदा करते हैं . संसार मे अनिंदित कोई नही है .

न चाहु न च भविस्सति, न चेतरहि विज्‍जति।

एकन्तं निन्दितो पोसो, एकन्तं वा पसंसितो॥

                           धम्मपद २२८

ऐसा पुरुष जिसकी निंदा ही होती है या प्रशंसा ही प्रशंसा , न था , न है और न होगा .

Tuesday, May 4, 2010

Daily words of the Buddha # 4-5-2010

चरन्ति बाला दुम्मेधा, अमित्तेनेव अत्तना।

करोन्ता पापकं कम्मं, यं होति कटुकप्फलं॥

बाल बुद्धि वाले मूर्ख जन अपने ही शत्रु बन कर वैसे ही आचरण करते हैं और ऐसे ही पापकर्म करते है जिसका फ़ल उनके लिये कडुवा होता है ।

                                               धम्मपद ६६