Saturday, May 17, 2014
Friday, May 16, 2014
Thursday, May 15, 2014
Wednesday, May 14, 2014
बुद्ध पुर्णिमा की शुभकामनायें...
युद्ध नहीं अब बुद्ध चहिए ।
मानव का मन शुद्ध चाहिए ॥
सत्य, अहिंसा, विश्व बंधुता, करुणा, मैत्री का हो प्रसार।
पंचशील अष्टांग मार्ग का पुनः जग में हो विस्तार ॥
समता, ममता, और क्षमता, से, ऐसा वीर प्रबुद्ध चाहिए ।
युध्द नहीं अब बुध्द चहिए ।
मानव का मन शुध्द चाहिए ॥
कपट, कुटिलता, काम वासना, घेर रगी है मानव को ।
कानाचार वा दुराचार ने, जन्म दिया है दानव को ॥
न्याय, नियम का पालन हो अब, सत्कर्मो की बुध्दि चाहिए ।
युध्द नहीं अब बुद्ध चहिए ।
मानव का मन शुद्ध चाहिए ॥
मंगलमय हो सब घर आँगन, सब द्वार बजे शहनाई ।
शस्य श्यामता हो सब धरती, मानवता ले अंगड़ाई ॥
मिटे दीनता, हटे हीनता, सारा जग सम्रद्ध चहिए ।
युध्द नहीं अब बुद्ध चहिए ।
मानव का मन शुद्ध चाहिए
अनित्यता - Impermanence (Anicca)
सब्बे संङ्खारा अनिच्चाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया।। (धम्मपद २७७)
सारे संस्कार अनित्य हैं यानी जो हो रहा है वह नष्ट होता ही है । इस सच्चाई को जब कोई विपशयना से देख लेता है , तब उसको दुखों से निर्वेद प्राप्त होता है अथात दु:ख भाव से भोक्ताभाव टूट जाता है । यह ही है शुद्ध विमुक्ति का मार्ग !! धम्मपद २७७
Tuesday, May 13, 2014
Monday, May 12, 2014
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