पोराणमेतं अतुल, नेतं अज्जतनामिव।
निन्दन्ति तुण्हिमासीनं, निन्दन्ति बहुभाणिनं।
मितभाणिम्पि निन्दन्ति, नत्थि लोके अनिन्दितो॥
धम्मपद २२७
हे अतुल , यह पुरानी बात है , आज की नही , लोग चुप रहने वाले की भी निंदा करते हैं , बहुत बोलने वाले की भी निंदा करते हैं . संसार मे अनिंदित कोई नही है .
न चाहु न च भविस्सति, न चेतरहि विज्जति।
एकन्तं निन्दितो पोसो, एकन्तं वा पसंसितो॥
धम्मपद २२८
ऐसा पुरुष जिसकी निंदा ही होती है या प्रशंसा ही प्रशंसा , न था , न है और न होगा .